शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

संस्कृत भाषा रुग्णवस्था में है उपचार की जरूरत है स्वामी विवेकानंद

 संस्कृत भाषा रुग्णवस्था में है उपचार की जरूरत है स्वामी विवेकानंद

संस्कृत भाषा के माध्यम से वैदिक संस्कृति का संपूर्ण विश्व में प्रचार

संस्कृत भारती का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का शुभारम्भ


By - मेरठ ख़बर लाइव न्यूज सह संपादक प्रवेश कुमार रोहतगी।। मेरठ















मेरठ ।संस्कृत भाषा रुग्ण अवस्था में है इसको उपचार की जरूरत है संस्कृत भारती के राष्ट्रीय सम्मेलन के माध्यम से इस रोग का उपचार किया जा सकता है संस्कृत भारती का कार्य संस्कृत भाषा के माध्यम से वैदिक संस्कृति को संपूर्ण विश्व प्रसारित करना है जो कहती है कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को सब ओर से रक्षा करें जब व्यक्ति स्वस्थ होता है तो उसकी शारीरिक अवस्था या आंतरिक प्रस्ताव के विषय में कोई कुछ नहीं पूछता लेकिन रुग्ण अवस्था में उसको सब पूछते हैं यह बात नेताजी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षा ग्रह मैं संस्कृत भारती के तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर गुरुकुल प्रभात आश्रम के कुलपति स्वामी विवेकानंद जी महाराज ने कही।।

महाभारत में भगवान श्री कृष्ण की भूमिका निभाने वाले नितीश भारद्वाज आ नहीं पाए इसीलिए ऑनलाइन माध्यम से उन्होंने अपनी बात रखें उन्होंने कहा कि मेरठ में शैल्य चिकित्सा के कारण नहीं पहुंच पाया अभी भी मुझसे बैठने में तकलीफ है वरना मैं जरूर आता कार्यक्रम को बहुत मिस कर रहा हूं. उन्होंने कहा कार्यक्रम से जो भी परिणाम निकलता है मेरे लायक जो भी सेवा हो मैं संस्कृत के लिए करूंगा इस संस्था के सदस्य के रूप में कार्य करूंगा. उन्होंने कहा जब संस्कृत शब्द को सोचते हैं आंखें बंद करते हैं तो आंखों के सम्मुख भागवत धर्म शास्त्र रामायण पंचतंत्र समूचा भारत का साहित्य इसी भाषा में मिलता है. संस्कृत भाषा की उपस्थिति देश और विदेशों में दिखती है तो चाय तिब्बतो थाईलैंड हो नेपाल हो जापान हो या मलेशिया. उन्होंने कहा संस्कृत ऐसी जीवंत भाषा परिपूर्ण भाषा है जिसमें व्यंजन स्वर्ण और संधि विग्रह सभी है किंतु खेद है कि एक समय में जीवन की रहने वाली भाषा आज अपने ही देश में जीवंत नहीं है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर नरेंद्र कुमार तनेजा ने कहा कि संस्कृत को अर्थ से जोड़ना होगा जो कि संस्कृत में रोजगार उपलब्ध कराने से संभव होगा अर्थ को भारतीय संस्कृति के मूलाधार पुरुषार्थ चतुष्टम में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। एशिया के कई देशों में संस्कृत संस्कृत भाषा को प्रमुख स्थान दिया जाता है हमें अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए और दोबारा से संस्कृत के उत्थान के लिए काम करना चाहिए यह भाषा हमारी संस्कृति को पहचान दिलाती है. उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष डॉ वाचस्पति मिश्र ने सभी का स्वागत किया और कहा कि उत्तर प्रदेश के समस्त विद्यालयों संस्कृत विषय को अनिवार्य रूप से पढ़ाने हेतु सरकार के साथ मिलकर प्रयास करने का प्रण लिया। 

उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के निदेशक आईएएस पवन कुमार ने कहा कि विगत 4 वर्षों में संस्थान ने संस्कृत के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम किए हैं निशुल्क प्रशासनिक सेवा की कोचिंग संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए शुरू की है गत वर्ष 8 छात्र संस्कृत के पीसीएस में चयनित हुए मिस्ड कॉल सेवा द्वारा 80000 लोगों ने संस्कृत सीखने हेतु रजिस्ट्रेशन कराया। 

संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्रीश देव पुजारी ने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य संस्कृत भाषा के कार्य को बढ़ाने के साथ-साथ संस्कृत शिक्षण की गुणवत्ता को बढ़ाने की रूपरेखा तैयार करना है आगामी वर्षों में संस्कृत भारती के कार्य को खंड एवं बस्ती स्तर तक अर्थात ग्रामों में संस्कृत भाषा का प्रशिक्षण कराने का लक्ष्य रखा गया है। 

संस्कृत भारती के मेरठ प्रांत अध्यक्ष प्रोफेसर पवन शर्मा ने मेरठ जनपद का ऐतिहासिक महत्व बताते हुए क्रांति की भूमि कहां और संस्कृत भाषा के उन्नयन हेतु संस्कृत संभाषण के माध्यम से एक नई क्रांति लाने का आह्वान किया। इस दौरान एक पुस्तक का भी विमोचन किया गया। 

संस्कृत भारती के पालक अधिकारी श्री सुरेश सोनी जी भी मौजूद रहे । सम्मेलन में पूरे देश भर से 600 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया तथा इस दौरान प्रति कुलपति प्रोफेसर वाई विमला, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर भूपेंद्र सिंह कुल अनु शासक प्रोफेसर वीरपाल डॉ राजेंद्र पांडे डॉक्टर नरेंद्र पांडे सहित विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षक मौजूद रहे।

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