बुधवार, 23 फ़रवरी 2022

विवि परिसर के कृषि संकाय के विद्यार्थियों की एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया

विवि परिसर के कृषि संकाय के विद्यार्थियों की एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया












मेरठ। 23 फरवरी ( मेरठ ख़बर लाइव न्यूज) आज के समय में किसी भी प्रकार की फसल के उत्पादन में कृषकों द्वारा विभिन्न प्रकार के रासायनिक पदार्थाे का उपयोग किया जाता है। जिसके परिणाम स्वरुप उत्पादन की मात्रा तो बढ़ जाती है, परन्तु इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति निरंतर कम होती जा रही है इसके साथ ही प्रतिदिन लोग नई-नई बीमारियों से ग्रसित होते जा रहे है। इसके साथ ही पर्यारण संतुलन बिगड़ता जा रहा है।  हालाँकि जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा निरंतर प्रयास जारी है। प्रकृतिक खेती पर व्याख्यान देते हुए डॉ0 गगनेश शर्मा निदेशक आर्गेनिक संस्थान गाजियाबाद ने साइंस वीक फेस्टिवल के दूसरे दिन नेता जी सुभाष चंद्र बोस प्रेक्षागृह में कही।  

उन्होंने कहा कि ऑर्गेनिक या जैविक खेती करनें के लिए कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं के अनुसार कार्य करना आवश्यक है। जो इस प्रकार है-

.मिट्टी की जाँच

यदि आप ऑर्गेनिक खेती करना चाहते है, तो सबसे पहले आपको अपनें खेत की मिट्टी की जांच करवानी चाहिए, जो आप किसी भी निजी लैब या सरकारी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला में करवा सकते है।  इससे कृषक को खेत की मिट्टी से सम्बंधित यह प्राप्त जानकारी हो जाती है, कि मिट्टी में किस तत्व की कमीं है।  जिससे कृषक उपयुक्त खाद और कीटनाशकों का उपयोग कर अपनें खेत को अधिक उपजाऊ बना सकते है।

जैविक खाद बनाना

ऑर्गेनिक या जैविक खेती करनें के लिए आपके पास पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद होना आवश्यक है।  इसके लिए आपको जैविक खाद बनानें के बारें में जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है।   जैविक खाद का मतलब ऐसी खाद से है, जो पशु मल-मूत्र अर्थात गोबर तथा फसलों के अवशेष से बनायीं जाती है।  आप वेस्ट डिस्पोजर की सहायता से ऑर्गेनिक खाद 3 से 6 माह में तैयार कर सकते है।    

ऑर्गेनिक खाद को विभिन्न प्रकार से तैयार किया जाता है, जैसे- गोबर गैस खाद, हरी खाद, गोबर की खाद आदिद्य इस प्रकार की कम्पोस्ट को प्राकृतिक खाद भी कहते है। आर्गेनिक खेती करने से भूमि की उर्वरक क्षमता अर्थात उपजाऊ शक्ति में वृद्धि होती है, जिससे उत्पादन अधिक होता है। जैविक खेती से पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है अर्थात पर्यावरण संतुलन बना रहता है। रसायनिक खेती की अपेक्षा आर्गेनिक खेती में पानी की आवश्यकता कम होती है। आर्गेनिक खेती में फसलों के उत्पादन में कृषक को लागत कम लगनी पड़ती है और लाभ अधिक होता है। ऑर्गेनिक खेती से उत्पन्न अनाज का सेवन करनें से व्यक्ति को किसी प्रकार की बीमारी से ग्रसित होनें का खतरा नहीं होता है। पारम्परिक खेती की अपेक्षा जैविक खेती में पैदावार कम होती है परन्तु आय अधिक होती है क्योंकि मार्केट में जैविक खेती से उत्पादित अनाज की मांग अधिक है। ऑर्गेनिक खेती से कृषि के सहायक जीव सुरक्षित रहनें के साथ ही उनकी संख्या बढ़ोतरी होती है।

भारत में जैविक खेती करनें वाले राज्य

भारत में सिक्किम देश का पहला ऐसा राज्य है, जिसे 100 फ़ीसदी जैविक खेती करनें के लिए  ग्लोबल फ्यूच पॉलिसी अवार्ड दिया गया है।  आपको बता दें कि सिक्किम का कुल क्षेत्रफल 7 लाख 29 हजार 900 हेक्टर है, जिसमें से मात्र 10.20 प्रतिशत क्षेत्र कृषि योग्य है।  जबकि शेष क्षेत्र वन, बेमौसम भूमि के, शीत मरुस्थल और अल्पाइन क्षेत्र आदि के अंतर्गत आते हैं।

दूसरे सत्र में विवि परिसर के कृषि संकाय के विद्यार्थियों की एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।

वही दूसरे सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ विवेक शर्मा प्रोफेसर एंट्रीगल विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश रहे। डॉ विवेक शर्मा ने मेडिसन प्लांट व एरोमेटिक प्लांट की उपयोगिता व भविष्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि किस प्रकार से मेडिसिनल प्लांट के प्रोडक्ट को बाजार में पहुंचाया जाए। कार्यक्रम में विज्ञान प्रसार की वीडियो भी दिखाई गई। नोडल अधिकारी प्रोफेसर शैलेंद्र शर्मा डीन कृषि प्रोफेसर शैलेंद्र सिंह गौरव प्रोफेसर राहुल कुमार डॉ सचिन कुमार डॉ पवित्र देव डॉ अजय कुमार व छात्र छात्राएं मौजूद रहे। कार्यक्रम में विज्ञान प्रसार मंत्रालय द्वारा एक ऑनलाइन व्याख्यान भी हुआ जिसमें वक्ता के रूप में डॉ यशवंत देव पवार रहे डॉ यशवंत ने पेटेंट की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया व पेटेंट संबंधी सभी बारीकियों के बारे में छात्रों को अवगत कराया।

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