सोमवार, 6 दिसंबर 2021

सुभारती विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन


सुभारती विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन

By - मेरठ ख़बर लाइव न्यूज सह संपादक प्रवेश कुमार रोहतगी ।। मेरठ









मेरठ।स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के डॉ. बी.आर.अम्बेडकर पीठ, सरदार पटेल सुभारती लॉ कॉलिज एवं फैकल्टी ऑफ आर्ट एवं सोशल साईन्स के राजनीतिक विज्ञान एवं समाजशास्त्र विभाग के संयुक्त तत्वाधान में डॉ.बी.आर.अम्बेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। यूट्यूब एवं फेसबुक पर लाइव हुए इस कार्यक्रम का विषय था “उभरता भारत एवं डॉ.बी.आर.अम्बेडकर की विचारधारा”। इस वेबिनार का संचालन करते हुए राष्ट्रीय वेबिनार के समन्वयक डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी ने कार्यक्रम के विषय व उसकी महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर चेयर तथा स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय का परिचय विस्तार पूर्वक दिया। उन्होंने कार्यक्रम में उपस्थित  सभी अतिथियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति डॉ. जी. के. थपलियाल को सम्बोंधन के आमंत्रित किया। अपने सम्बोंधन में माननीय कुलपति ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर ने हमारे संविधान के माध्यम से अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। उन्होंने समाज में व्याप्त तमाम बुराईयों को रेखांकित किया तथा एक समान सामाजिक व्यवस्था बनाने का दृष्टिकोण दिया। भारत को एक सम्प्रभुत्व राष्ट्र बनाने में उनकी बडी भूमिका थी। उनका मानना था कि भारत जैसे देश में जहां लोग धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्र के आधार पर बँटे हुए है भारत का संविधान ही एक दिशा निर्देशक के रूप में एक अहम भूमिका निभाएगा। वे अपने समय के सर्वाधिक समर्पित नेताओं में से एक थे। 

महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय, मोतीहारी, बिहार के माननीय कुलपति प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने अपने सम्बोंधन में कहा कि डॉ. बी.आर.अम्बेडकर को समझने के लिए हमें अपनी सोच में व्यापकता, सहजता, तटस्थता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण लाना होगा। उन्होंने कहा कि बाबा साहब राष्ट्रीय आंदोलन में सर्वाधिक शिक्षित और उपाधि प्राप्त विद्धवानों में से थे। वे विधि के विद्धवान होने के साथ साथ पत्रकार, लेखक, राजनेता, वक्ता, दल निर्माता तथा समाज सुधारक थे। प्रो. संजीव कुमार शर्मा ने अपने उद्बोधन मे कहा कि अम्बेडकर की संविधान निर्माण में भूमिका अतुलनीय है। भारतीय संविधान राष्ट्र निर्माण का एक सजीव दस्तावेज है। सामाजिक न्याय एवम् समतामूलक समाज की स्थापना हम मूल्योन्मुखी होकर ही कर सकते है। अम्बेडकर का मानना था कि लोकतंत्र की सफलता उसके चलाने वालो की कार्यकुशलता पर निर्भर करती है। उनका मानना था कि वही लोकतंत्र सफल हो सकता है। जहाँ नागरिको को आलोचना करने का एवम् शासन व्यवस्था से प्रश्न पूँछने का अधिकार हो बिना सामाजिक एवम् आर्थिक लोकतंत्र की सफलता के लोकतंत्र सफल नही हो सकता है। 

पी.जी डिपार्टमेंट ऑफ पॉलिटिकल सांईस, गर्वमेन्ट विदर्भ, इंस्टीट्यूट ऑफ सांईस एण्ड ह्यूमिनिटी, अमरावती, महाराष्ट्र  के  प्रो. (डॉ.) कुँवर लाल वासनिक ने कहा कि अम्बेडकर मानते थे कि राष्ट्रीय संसाधनों का राष्ट्रीयकरण हो और उसमें गरीबों एवं वंचितों को उचित स्थान मिले। उनके विचार उदयमान और उभरते भारत के लिए बहुत ही सार्थक एवं महत्वपूर्ण हैं। मानवता और प्रत्येक व्यक्ति के गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार के लिए उनका संघर्ष नही भुलाया जा सकता। 

अर्थशास्त्र विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के प्रो. (डॉ.) दिनेश कुमार ने कहा कि यदि आर्थिक वृद्धि सामाजिक विकास की लागत पर हो तो वह न्याय संगत नही हो सकती। डॉ. अम्बेडकर ने समाज के विकास के लिए और मानव सेवा के लिए अपने जीवन की बलिदान किया। समाज में फैली विभिन्न बुराईयाँ जैसे जाति आधारित व्यवस्था मानवता के विरूद्ध हैं। बाबा साहिब जीवन-पर्यन्त मानव सेवा के लिए लगे रहें। वे मानते थे कि राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक समानताएं तभी तक महत्व रखती है जब मनुष्यों के बीच में समानता हो। दीर्घकालीन विकास एवं भविष्य निर्माण में नीति-नियंताओं को अपनी भूमिका निभानी होगी। प्रो.(डॉ.) दिनेश कुमार ने कहा सचिव भारतीय अर्थशास्त्र परिषद एवम् प्रो. अर्थशास्त्र विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने कहा कि शासन व्यवस्था में मानव कल्याण के केन्द्र बिन्दु में मनुष्य होता है एवम् समाज के अंतिम छौर के मनुष्य का कल्याण उद्धेश्य होता है। प्रो. दिनेश कुमार ने कहा कि भारत जातियो का देश है और जाति है कि हरती नही। हमें उन कारको पर गम्भीरता से विचार विमर्श करना होगा कि आजादी के 75 वर्षो बाद भी हम समतामूलक एवम्  सामाजिक न्याय की स्थापना भारत में क्यों नही कर पाये। वर्तमान में आर्थिक विषमता बढ़ी है। हमें इसके अंतर को कम करना होगा। सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर लोकतांत्रिक मूल्यों की कीमत पर नही होनी चाहिए। असमान शिक्षा के माध्यम से हम साक्य सामाज एवम समावेशी समाज की सकल्पना नही कर सकते। आज 90% लोग अंसगठित क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रहे। हमारे पास अंसगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे लोगो का कोई आंकडा(Data) नही है। आंकडो का विकास के खांचा निर्धारित करने में योगदान है। सरकारो को इस दिशा में गंभीर प्रय़ास करने होगें । अम्बेडकर के विकास की परिकल्पना वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक एवम् आर्थिक परिदृश्य में प्रांसगिक है।राजकीय महिला पी.जी.कॉलिज बादलपुर, यू.पी. के इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रो. ( डॉ.) किशोर कुमार ने अपने सम्बोंधन में कहा कि धारणाओं एवं पूर्वाग्रहों से रहित होकर डॉ. अम्बेडकर के लेखन को पढ़ना चाहिए। आजादी के बाद 75 वर्षो में सबसे बडे लोकतंत्र के रूप में उभरता भारत डॉ. अम्बेडकर का ऋणी है। भारत के जिन महान लोगों ने दुनिया को जीवन दर्शन दिया, अम्बेडकर भी उन्हीं महान लोगों में शामिल है। शासन को स्कूल कॉलिज आदि से विद्यार्थियों के जाति वाले कॉलम को खतम कर देना चाहिए और एक आदर्श जाति विहीन समाज के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहिए यही हमारी सच्ची श्रृद्धाजंलि उन्हें होगी।सरदार पटेल सुभारती विधि संस्थान के संकायाध्यक्ष प्रो.(डॉ.) वैभव गोयल भारतीय ने कहा कि वर्तमान में राजनीतिक दल जनता को केवल वोट बैंक मानते है। आज के नेता चुनाव आने के समय जनता को रिझाने और प्रसन्न करने का कार्य करते है जबकि एक कुशल व्यवस्था बनाने की बात होनी चाहिए। अधिकारों की बात करें तो बुजुर्गों के अधिकार, दिव्यांगजनो के अधिकार, बच्चों के अधिकार, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार एवं स्वास्थय के अधिकार आदि पर गंभीर चिंतन होना चाहिए। डॉ. अम्बेडकर शिक्षा को अत्याधिक महत्वपूर्ण मानते थे उनका कहना था कि वास्तव में शिक्षा नही होगी तो देश भटक जायेगा। नई शिक्षा नीति 2020 उनके शिक्षा के उद्धेश्यों को पूरा करेगी ऐसी हमारी आशा है। डॉ. अम्बेडकर के दो महत्वपूर्ण उद्धेश्य थे कि सम्पूर्ण भारत के प्रत्येक समाज को शिक्षित करना होगा एवं कानूनी जागरूकता फैलानी होगी। अपने अध्यक्षीय सम्बोंधन में स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के उपकुलाधिपति प्रो. (डॉ.) वी.पी.सिंह ने सर्वप्रथम बाबा साहब को अपनी श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वास्तव में वे एक बौद्धिक व्यक्तित्व थे। महिला सशक्तिकरण, समाज के वंचित वर्ग के उत्थान एवं विभिन्न सामाजिक कार्यो के लिए उन्होंने कार्य किया भारत के विधि मंत्री के रूप में उन्होंने अपनी बौद्धिक क्षमता का परिचय दिया। बौद्ध अध्ययन केन्द्र के भंतेचन्द्र कीर्ति ने कहा कि आज भी जाति के आधार पर भेद-भाव किया जाता है, ऐसी घटनाएं समाज के विकास क्रम को बाद्धित करती है। शिक्षा ही वह माध्यम है जिसके आधार पर हम समाज में जाति-विहीन चेतना लाने का प्रयास कर सकते है। डॉ. प्रेम चन्द्र ने वेबिनार के अंतिम चरण धन्यवाद ज्ञापित किया।

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