सोमवार, 20 सितंबर 2021

डॉ. अम्बेडकर शोध पीठ में द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का हुआ सफलता पूर्वक समापन

 


डॉ. अम्बेडकर शोध पीठ में द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार का हुआ सफलता पूर्वक समापन

डॉ. भीमराव अम्बेडकर आधुनिक भारत के मनु - प्रो.एम.एम.सेमवाल

सामाजिक न्याय, राजनीतिक न्याय, की पूर्वशर्त -  राजेश चन्द्रा,”

By - मेरठ ख़बर लाइव न्यूज सह संपादक प्रवेश कुमार रोहतगी।। मेरठ

मेरठ । डॉ. भीमराव अम्बेडकर शोध पीठ, स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार “ट्रांसफॉर्मिग इक्विटेबल एण्ड इनक्लूसिव सोसाइटी इन इंडिया: विजन ऑफ डॉ.बी.आर.अम्बेडकर” के समापन सत्र के अवसर पर मुख्य अतिथि वक्ता प्रो.(डॉ.) एम.एम.सेमवाल, विभागाध्यक्ष राजनीति विज्ञान विभाग, हेमवती नन्दन बहुगुणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय, श्रीनगर, उत्तराखण्ड ने कहा कि बाबा साहिब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को आधुनिक भारत का मनु कहा जा सकता है। अम्बेडकर केवल सामाजिक एवम् राजनीतिक नही अपितु आर्थिक विचारक थे। संविधान एवम् डॉ. अम्बेडकर एक दूसरे के पर्याय है। उनका मानना था कि सामाजिक परिवर्तन एवम् सामाजिक समरसता हम केवल संविधान के माध्यम से ला सकते है। प्रो. सेमवाल ने कहा कि अम्बेडकर का मानना था कि हम तब तक प्रगतिशील एवम् समृद्ध  राष्ट्र एवम् समाज की संकल्पना नही कर सकते जब तक कि महिलाओं को समान प्रथिनिधित्व प्राप्त नही हो जाता। उनका मानना था कि वर्ण व्यवस्था श्रम का विभाजन करने के साथ-साथ श्रमिकों का भी विभाजन करती है। अम्बेडकर का मानना था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था से ही हम समतामूलक समाज एवम् बन्धुत्व की भावना विकसित कर सकते थे। प्रो.एम.एम. सेमवाल ने अपने उद्बोधन में कहा कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ससदीय लोकतंत्र के लिये प्रभावी एवम् सशक्त विपक्ष की आवश्यकता पर बल दिया वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में मजबूत विपक्ष की आवश्यकता पर बल दिया जिससे बहुमत की सरकारे निरंकुश होकर शासन न कर सके। समाज का सामाजिक पुन:निर्माण होना चाहिये।







समापन सत्र के विशिष्ट अतिथि वक्ता प्रो.डॉ. दिनेश कुमार, सचिव भारतीय अर्थशास्त्र परिषद एवम् प्रो. अर्थशास्त्र विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने कहा कि शासन व्यवस्था में मानव कल्याण के केन्द्र बिन्दु में मनुष्य होता है एवम् समाज के अंतिम छौर के मनुष्य का कल्याण उद्धेश्य होता है। प्रो. दिनेश कुमार ने कहा कि भारत जातियो का देश है और जाति है कि हरती नही। हमें उन कारको पर गम्भीरता से विचार विमर्श करना होगा कि आजादी के 75 वर्षो बाद भी हम समतामूलक एवम्  सामाजिक न्याय की स्थापना भारत में क्यों नही कर पाये। वर्तमान में आर्थिक विषमता बढ़ी है। हमें इसके अंतर को कम करना होगा। सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर लोकतांत्रिक मूल्यों की कीमत पर नही होनी चाहिए। असमान शिक्षा के माध्यम से हम साक्य सामाज एवम समावेशी समाज की सकल्पना नही कर सकते। आज 90% लोग अंसगठित क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रहे। हमारे पास अंसगठित क्षेत्रों में कार्य कर रहे लोगो का कोई आंकडा(Data) नही है। आंकडो का विकास के खांचा निर्धारित करने में योगदान है। सरकारो को इस दिशा में गंभीर प्रय़ास करने होगें । अम्बेडकर के विकास की परिकल्पना वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक एवम् आर्थिक परिदृश्य में प्रांसगिक है।


विशिष्ट अतिथि वक्ता प्रो.(डॉ.) चित्रा प्रभात, राजकीय स्नान्तकोत्तर महाविद्यालय करनी, मध्य प्रदेश ने अपने उद्बोधन मे कहा कि अम्बेडकर की संविधान निर्माण में भूमिका अतुलनीय है। भारतीय संविधान राष्ट्र निर्माण का एक सजीव दस्तावेज है। सामाजिक न्याय एवम् समतामूलक समाज की स्थापना हम मूल्योन्मुखी होकर ही कर सकते है। अम्बेडकर का मानना था कि लोकतंत्र की सफलता उसके चलाने वालो की कार्यकुशलता पर निर्भर करती है। उनका मानना था कि वही लोकतंत्र सफल हो सकता है। जहाँ नागरिको को आलोचना करने का एवम् शासन व्यवस्था से प्रश्न पूँछने का अधिकार हो। बिना सामाजिक एवम् आर्थिक लोकतंत्र की सफलता के लोकतंत्र सफल नही हो सकता है।

अतिथि वक्ता प्रो.(डॉ.) वैभव गोयल भारतीय, प्राचार्य एवम् संकायाध्यक्ष सरदार पटेल सुभारती इस्टटीयूट ऑफ लॉ, ने अपने उद्बोधन में कहा कि व्यक्ति से समाज है या समाज से व्यक्ति, यह हमेशा विवाद का विषय रहा है। जब समाज में व्यक्तियों के मध्य विवाद होता है। तब कानून अपनी भूमिका निभाता है। हमें ऐसे समाज की स्थापना करनी होगी जहाँ व्यक्ति –व्यक्ति से जुड़े/वर्ग//वर्ण व्यवस्था विभेदकारी है। इसके होने पर समाज समतामूलक एवम् समावेशी नही हो सकता है।

अतिथि वक्ता प्रो.(डॉ.) नीरज करन सिंह, संकायाध्यक्ष, सुभारती पत्रकारिता एवम् जनसंचार महाविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर की राष्ट्र निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता उनके इस विचार से ली जा सकती हैं जिसमें उनका मानना था कि राष्ट्रवाद तभी विकसित हो सकता है। जब हम जाति/वर्ग/समाज की स्थापना नही कर एकीकृत रूप से भारतीय समाज की स्थापना के लिए दृढ संकल्पित हो।

अतिथि वक्ता डॉ. विकास कुमार उपाध्याय, विधि विभाग निरमा विश्वविद्यालय, अहमदाबाद, गुजरात ने अतिथि वक्ता के रूप में अपने उद्बोधन में कहा कि अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान का संकल्पित उद्देश्य भारत में विधि का शासन स्थापित कर कल्याणकारी राज्य के माध्यम से समतामूलक एवम् समावेशी समाज की स्थापना था एवम् इसके निर्माण में कानून की महन्ती भूमिका है।

राजेश चन्द्रा, (पूर्व न्यायधीश इलाहाबाद उच्च नय्यायलय ) समन्वयक, डॉ.अम्बेडकर शोध पीठ, सरदार पटेल सुभारती इस्टटीयूट ऑफ लॉ,स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय, मेरठ ने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कहा कि डॉ. भीम राव अम्बेडकर एक महान शिक्षक, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, उपदेशक, समाज सुधारक, सामाजिक क्रान्तिकारी होने का साथ-साथ महिलाओ व शोषित वर्ग के अधिकारो के प्रबल समर्थक थे । वह सम्पूर्ण समाज के लिये सामाजिक एवं आर्थिक न्याय के विचार स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व की नींव पर रखते थे । उन्होनें बताया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-32 संविधान का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान है यह प्रावधान भारतीय संविधान की आत्मा है । उन्होंने भारतीय संविधान की आधारशिला रखते हुए ऐसे लोकतंत्र की परिकल्पना की है जो स्वतंत्रता, ,समता और बंधुत्व को स्थापित कर सके । बाबा साहिब का सामाजिक एवं आर्थिक न्याय का आदर्श जन जन तक पहुँचे इसके लिये जरूरी है कि कानूनी प्रावधानों के साथ ही लोगो की मानसिकता में भी सकारात्मक परिवर्तन लाया जाये । डॉ. अम्बेडकर ने राज्य को समाज सेवा का माध्य माना है । राजनीति किसी भी प्रकार से स्वहित का माध्यम नही होनी चाहिये राज्य का मुख्य ध्येय समाजहित और देशहित है । शासक वर्ग को सदैव इस बात का ध्यान रखना चाहिये । सामाजिक न्याय, राजनीतिक न्याय की पूर्व शर्त है।

यूट्यूब तथा फेसबुक पर लाइव आयोजित इस द्विदिवसीय वेबिनार राष्ट्रीय वेबीनार के संयोजक  डॉ. मनोज कुमार त्रिपाठी, एसोसिएट प्रोफेसर, डॉ.अम्बेडकर शोध पीठ,  ने समापन सत्र के आरम्भ में इस द्विदिवसीय राष्ट्रीय वेविनार का विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि बाबा साहब डॉ. भीम राव अम्बेडकर का मानना था कि जातिवाद के कारण ही भारत में राष्ट्र भावना नही पनप पाई और भारत बार-बार गुलामी का शिकार होता रहा । इन्होनें एक ऐसे भारत का सपना देखा था जो समूह हो शक्तिशाली विकसित हो और दुनिया में अग्रणी हो/जाति व्यवस्था को तोड़े बिना भारत को समूह और शक्तिशाली नही बनाया जा सकता । बाबा साहब का मानना था कि हमें एक ऐसी संसकृति का विकास करना चाहिये जिसमें प्रत्येक देशवासी और प्रत्येक नागरिक को गरिमामय और आत्म सम्मान के साथ जीवन-जीने का अवसर प्राप्त हो तथा देश के नागरिको में परस्पर भाईजारे के साथ प्रेम और सौहार्द्ध की भावना हो । बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं सांसकृतिक चिंतन यथार्थपरक एवं मानवता के लिये था । समता, स्वतन्त्रता, बंधुत्व, गरिमा, आत्मसम्मान एवं न्याय उनके दर्शन का मुख्य लक्ष्य रहा है, जिसके लिये उन्होनें ऐसी सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक संरचना करने का आहवान किया जिसके बाद एक ऐसे समृद्ध भारत का निर्माण हो जहाँ समाज में जाति, सम्प्रदाय, लिंग या आर्थिक आधार पर कोई भेदभागव न हो, सभी को समान अवसर प्राप्त हो तथा गरिमा पूर्ण जीवन व्यतीत करने का वातावरण हो । बिना सामाजिक आर्थिक व राजनीतिक संरचना के समृद्ध भारत की संकल्पना ही बेमानी है ।

इस राष्ट्रीय वेबिनार में सभी अतिथियों, प्रतिभागियों, शिक्षकों एवम् छात्र-छात्राओं का धन्यवाद ज्ञापित डॉ. प्रेमचन्द्र रिसर्च ऑफिसर डॉ. अम्बेडकर शोध पीठ द्वारा किया गया ।

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